तलाक के बाद पति को भी मिल सकता है भरण-पोषण, जानें मर्दों के लिए कानून का मजेदार पहलू
पति-पत्नी का रिश्ता ऐसा है जैसे 'मिट्टी के खिलौने' – अगर संभाल कर रखें तो टिके रहते हैं, वरना टूटने में देर नहीं लगती। लेकिन जब यह रिश्ता टूटता है तो केवल दिल ही नहीं, जेब पर भी असर पड़ता है।
तलाक के बाद भरण-पोषण (maintenance) का मुद्दा ऐसा है जो अक्सर चर्चा में रहता है। आमतौर पर पत्नी ही पति से गुजारा भत्ते की मांग करती है, लेकिन भाईसाहब, कानून में तो पति को भी यह अधिकार है कि वह पत्नी से अपने ‘खर्चे-पानी’ का हिसाब मांगे। अब आइए, इस ‘दिलचस्प दांव-पेंच’ को थोड़ा करीब से समझते हैं।
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कानून का ‘मसाला’ – भरण-पोषण का हक
भारत में तलाक के नियम ‘धार्मिक स्पेशल पैकेज’ की तरह आते हैं। हिंदू धर्म के अनुयायी हिंदू मैरिज एक्ट (Hindu Marriage Act) के तहत शादी करते हैं। इस कानून के सेक्शन 25 में स्पष्ट प्रावधान है कि तलाक के बाद पति और पत्नी दोनों में से कोई भी भरण-पोषण की मांग कर सकता है।
अब सोचिए, अगर पति का ‘फाइनेंशियल बैलेंस’ गड़बड़ हो और पत्नी अच्छी-खासी कमाई कर रही हो, तो पति क्यों न कहे – “भाई, मुझे भी कुछ चाहिए।” यही नहीं, तलाक के दौरान कोर्ट दोनों पक्षों की आर्थिक स्थिति का पूरा ‘ऑडिट’ करता है और फिर भरण-पोषण राशि तय होती है।
जब पति ने पत्नी से मांगे 10 करोड़
मुंबई की एक घटना ने इस मुद्दे पर नई बहस छेड़ दी। शादी के 25 साल बाद तलाक लेने वाले एक जोड़े में पति ने अपनी पत्नी से 10 करोड़ रुपये की मांग की। कोर्ट ने भी इस डिमांड को सही माना और पत्नी ने यह राशि चुकाई। अब इसे कहते हैं – ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’ वाला मामला।
ऐसे केस रेयर (rare) होते हैं, क्योंकि ज्यादातर मामलों में पत्नी ही पति से गुजारा भत्ते की डिमांड करती है। लेकिन इस केस ने साबित कर दिया कि कानून ‘जेंडर न्यूट्रल’ है, बस सही मौके पर सही ‘तुरुप का पत्ता’ खेलना आना चाहिए।
हिंदू विवाह कानून का ‘संजीवनी फॉर्मूला’
हिंदू विवाह अधिनियम में तलाक और भरण-पोषण का पूरा ‘फिक्स्ड डिपॉजिट’ है। धारा 9 के तहत अगर कोई पति-पत्नी बिना किसी ठोस कारण के अलग हो जाते हैं, तो दोनों में से कोई भी कोर्ट में ‘कॉन्जुगल राइट्स रिस्टोरेशन’ की मांग कर सकता है।
अगर यह मामला भी फेल हो जाए, तब तलाक की प्रक्रिया (Divorce Process) शुरू होती है। ध्यान रहे, तलाक ‘टिकट टू फ्रीडम’ जैसा नहीं है। इसमें समय, पैसा, और ‘मेंटल स्ट्रेस’ की पूरी ‘पैकेज डील’ मिलती है।
भरण-पोषण का ‘पलड़ा’ किसके पक्ष में?
अब सवाल यह उठता है कि तलाक के बाद भरण-पोषण का फैसला कैसे होता है। कोर्ट दोनों पक्षों की आय, संपत्ति, और जिम्मेदारियों का हिसाब लगाता है। अगर पत्नी हाई-फाई नौकरी कर रही है और पति ‘फ्रीलांसिंग’ में संघर्ष कर रहा है, तो पत्नी को भरण-पोषण देना पड़ सकता है।
दूसरी ओर, अगर पति की आमदनी अच्छी है, तो पत्नी आराम से ‘कूल लाइफ’ जी सकती है। कहने का मतलब यह है कि कोर्ट का फैसला पूरी तरह ‘फैक्स एंड फिगर्स’ पर निर्भर करता है।
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‘आम आदमी’ के लिए खास संदेश
तलाक के मामलों में सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों का होता है। इसलिए पति-पत्नी को चाहिए कि पहले ‘ऑफलाइन डिस्कशन’ करें और रिश्ते को संभालने की पूरी कोशिश करें। अगर बात न बने, तो तलाक के बाद आर्थिक जिम्मेदारियों को ‘शेयर’ करना ही बेहतर ऑप्शन है।
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