Mustard cultivation : सरसों की खेती से मिलेगा बंपर मुनाफा, ये खास किस्में बनाएंगी आपको मालामाल
भारत में रबी सीजन की फसलों (Crops) में सरसों का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में रहता है। कम समय में अधिक कमाई (Profit) देने के कारण यह फसल किसानों की पहली पसंद बन गई है।
Mustard cultivation Tips : सरसों की खेती से न केवल तेल उत्पादन (Mustard Oil Production) होता है बल्कि यह पशुओं के लिए चारा और खाद की दृष्टि से भी उपयोगी है। अगर किसान सही किस्मों और तकनीकों का चयन करें, तो वे अपनी कमाई को चार गुना तक बढ़ा सकते हैं। सरसों की खेती (Mustard Farming) के लिए सही किस्मों का चयन करना बेहद जरूरी है।
गिरिराज, टी 59, आरएच 725 और पूसा सरसों 28 जैसी उन्नत किस्मों का उपयोग करने से किसान सामान्य किस्मों के मुकाबले अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं। इन किस्मों की खेती के लिए राजस्थान को सबसे उपयुक्त जगह माना जाता है क्योंकि यहां की जलवायु और मिट्टी सरसों की खेती के लिए अनुकूल हैं।
सरसों की खेती के लिए बीजों का चयन क्यों है जरूरी?
किसी भी फसल की बंपर पैदावार के लिए सबसे अहम भूमिका बीजों (Seeds) की होती है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, सरसों की कुछ खास किस्में, जैसे गिरिराज, टी 59, आरएच 725 और पायनियर 45 जैसी किस्में, किसानों को ज्यादा उत्पादन के साथ अधिक मुनाफा देती हैं। इन किस्मों की खासियत यह है कि ये रोगरोधी होती हैं और कम लागत में ज्यादा उपज देती हैं।
राजस्थान है सरसों की खेती का केंद्र
सरसों की खेती (Sarso ki kheti) की बात आते ही सबसे पहले राजस्थान का नाम आता है। राजस्थान के जलवायु और मिट्टी (Soil) की विशेषता इसे सरसों की खेती के लिए सबसे उपयुक्त बनाती है। यही कारण है कि देश में सरसों का सबसे अधिक उत्पादन राजस्थान में होता है।
सरसों की फसल के लिए कितने समय की जरूरत?
सरसों की फसल औसतन 125-130 दिनों में तैयार हो जाती है। इसका मतलब यह है कि किसान सिर्फ चार महीनों में ही अपनी लागत से चार गुना तक मुनाफा कमा सकते हैं। इस फसल की सबसे खास बात यह है कि यह कम लागत में अधिक मुनाफा देती है।
सरसों की खेती की लागत और मुनाफा
विशेषज्ञों का मानना है कि सरसों की खेती में बीज, खाद, और सिंचाई की कुल लागत लगभग 30-35 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर आती है। इसके बावजूद किसान इस फसल से 1 लाख से लेकर 1.25 लाख रुपये तक का मुनाफा कमा सकते हैं।
बुवाई से पहले खेत की तैयारी कैसे करें?
सरसों की बुवाई से पहले खेत की तैयारी बेहद जरूरी होती है। जमीन की सिंचाई बुवाई से 35-40 दिन पहले कर देनी चाहिए। इसके बाद प्रति हेक्टेयर 35 किलो यूरिया, 4 किलो जिंक और 3 किलो सल्फर डालने से फसल की गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ता है।
उपज बढ़ाने के लिए सिंचाई का सही तरीका
सरसों की बुवाई के बाद फसल को 4-5 बार सिंचाई (Irrigation) की आवश्यकता होती है। फव्वारा या ड्रिप सिस्टम के माध्यम से सिंचाई करना ज्यादा फायदेमंद रहता है।
सरसों की खेती में रोग प्रबंधन
सरसों की फसल को कई रोगों, जैसे सफेद रोली, तना गलन, और झुलसा रोग का खतरा रहता है। इनसे बचाव के लिए ग्लाइफोसेट, मैंकोजेब, और सल्फर जैसी दवाओं का उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा, ठंड से बचाव के लिए भी सल्फर का प्रयोग किया जा सकता है।
उन्नत किस्में जो बढ़ाएंगी मुनाफा
सरसों की उन्नत किस्में, जैसे गिरिराज, पूसा सरसों 28, पायनियर 45, और एस 46, किसानों के लिए बेहद लाभदायक साबित हो रही हैं। इन किस्मों से अधिक पैदावार के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मिलती है।
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