राजस्थान के किसानों की बढ़ी मुश्किलें, नहरों में पानी की कमी से गेहूं की बुवाई हो रही लेट
रबी फसलों की बुआई खासकर गेहूं, चना और सरसों के लिए समय पर पलेवा होना जरूरी है। लेकिन जब नहरें सूखी रहती हैं तो यह प्रक्रिया बाधित होती है।
खेती के लिए पानी की आवश्यकता उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी शरीर के लिए ऑक्सीजन। लेकिन जब नहरों में पानी नहीं पहुंचता तो किसानों के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन जाती है। इस कमी को पूरा करने के लिए उन्हें ट्यूबवेल और पंपसेट जैसे महंगे साधनों का सहारा लेना पड़ता है, जो न केवल उनकी लागत बढ़ाते हैं बल्कि डीजल और बिजली पर निर्भरता भी बढ़ाते हैं।
रबी फसलों की बुआई खासकर गेहूं, चना और सरसों के लिए समय पर पलेवा होना जरूरी है। लेकिन जब नहरें सूखी रहती हैं तो यह प्रक्रिया बाधित होती है। इसका सीधा असर फसलों की पैदावार पर पड़ता है जिससे किसानों की मेहनत और आय, दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
किसानों की बढ़ती समस्याएं
उरुवा विकास खंड क्षेत्र के किसान इस समय बड़ी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। बेलन नहर प्रखंड की ओनौर और सिकटी माइनरों में पिछले कई महीनों से पानी नहीं आया है। खेतों में धूल उड़ रही है जबकि इस समय नहरों से पानी बहने की उम्मीद होती है।
रामनगर के किसान जगदीश सिंह और हरिश्चंद्र शुक्ल के अनुसार, सरसों और गेहूं की फसलों की बुआई के लिए पलेवा करना अत्यंत आवश्यक है। लेकिन नहरों में पानी की कमी ने किसानों को मजबूर कर दिया है कि वे प्राइवेट नलकूप से सिंचाई करें जो पहले से ही बढ़ी हुई लागत के चलते मुश्किल साबित हो रहा है।
यही नहीं खाद और बीज की महंगाई ने किसानों की चुनौतियां और बढ़ा दी हैं। जब नहरों से पानी नहीं आता तो सिंचाई के लिए होने वाला अतिरिक्त खर्च किसानों की जेब पर भारी पड़ता है। इस स्थिति में खेती करना न केवल कठिन हो जाता है, बल्कि कई किसानों के लिए आर्थिक संकट का कारण बनता है।