Arhar Cultivation : किसान इस विधि से करें अरहर की खेती, जानें आप कैसे कर सकते हैं ज्यादा मुनाफा
भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ बड़ी संख्या में लोग खेती और पशुपालन पर निर्भर हैं। समय के साथ खेती के तरीकों में भी बदलाव आया है। आज किसान दलहनी फसलों जैसे अरहर की पैदावार बढ़ाने के लिए नई तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं। अरहर की दाल सेहत के लिए बेहद फायदेमंद मानी जाती है और इसका उत्पादन खासकर सूखे इलाकों में किया जाता है। खरीफ मौसम में इसकी बुआई होती है। आज हम जानेंगे कि कैसे किसान FIR (Furrow Irrigation with Raised Bed) विधि से अरहर की खेती करके ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।
FIR विधि से खेती की खासियत
FIR विधि अरहर की खेती के लिए एक नवीनतम और कारगर तरीका है। इसमें किसानों को पहले से उपचारित बीजों का उपयोग करने की सलाह दी जाती है ताकि फसल में लगने वाली बीमारियों और कीटों से बचा जा सके। इस विधि से फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है और पैदावार भी बढ़ती है।
पैदावार बढ़ाने का पहला कदम
गंधार कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञ मनोज कुमार के अनुसार बीज बुआई से पहले किसानों को फफुंदनाशी दवा से बीजों का उपचार करना चाहिए। कार्बेंडाजिम नामक फफुंदनाशी दवा का इस्तेमाल 50% WP की दर से किया जाता है। 10 किलो अरहर के बीज पर 20 ग्राम कार्बेंडाजिम (50% WP) मिलाया जाता है। इससे बीज फफूंद और अन्य रोगों से सुरक्षित रहते हैं।
बीज उपचार की प्रक्रिया
सबसे पहले प्लास्टिक की शीट पर 3 इंच मोटी बीज की परत बनाएं और इसे छाया में फैलाएं।
इसके ऊपर फफुंदनाशी दवा का छिड़काव करें और बीजों को अच्छी तरह मिलाएं।
इसके बाद बीजों को 24 घंटे के लिए जूट के बोरे से ढक दें ताकि वे सुरक्षित रहें।
दीमक से बचाव के लिए कीटनाशक का प्रयोग
अरहर की खेती ऊंचाई वाली जगहों पर की जाती है जहाँ दीमक का खतरा अधिक होता है। क्लोरोपायरीफॉस नामक कीटनाशक का 2 एमएल प्रति किलो बीज की दर से छिड़काव किया जाता है। यह दवा बीजों को दीमक के प्रभाव से बचाती है। दो दिनों बाद बीजों में कीटनाशक का छिड़काव करने के बाद उन्हें दोबारा 24 घंटे के लिए ढक दिया जाता है।
राइजोबियम कल्चर का महत्व
राइजोबियम कल्चर एक महत्वपूर्ण जीवाणु है जो फसलों में नाइट्रोजन की पूर्ति करता है। विशेषज्ञों के अनुसार एक एकड़ जमीन के लिए 250 एमएल राइजोबियम कल्चर की आवश्यकता होती है। इसे 400 ग्राम गुड़ और 400-500 एमएल पानी के साथ मिलाया जाता है और फिर इसे बीजों पर छिड़का जाता है। इससे नाइट्रोजन की पूर्ति बेहतर होती है और फसल की उपज बढ़ती है।
वर्मी कंपोस्ट का प्रयोग
बीजों में राइजोबियम कल्चर मिलाने के बाद उन पर सूखी वर्मी कंपोस्ट डालकर उन्हें मिट्टी में मिलाया जाता है। वर्मी कंपोस्ट के प्रयोग से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है जिससे फसल की पैदावार 25-30 प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकती है। यह प्रक्रिया किसानों के लिए बेहद फायदेमंद साबित होती है क्योंकि इससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों में सुधार होता है।
FIR विधि से किसान उठा सकते हैं अधिक मुनाफा
FIR विधि से अरहर की खेती करने वाले किसान सामान्य खेती की तुलना में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। इसके अलावा इस विधि से तैयार अरहर की दाल अधिक प्रोटीन युक्त होती है जिससे इसकी बाजार में मांग भी ज्यादा होती है। किसानों को विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार नवीनतम तकनीक और उचित दवाओं का उपयोग करना चाहिए ताकि वे अपनी फसल से अधिक उत्पादन और मुनाफा प्राप्त कर सकें।