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Toll Tax Free : निजी वाहन चालकों को मिलेगी बड़ी राहत, नितिन गडकरी ने टोल नियमों में किया बदलाव

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Toll Tax Free
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सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने हाल ही में राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क (दरों और संग्रह का निर्धारण) नियम, 2008 में एक महत्वपूर्ण संशोधन किया है, जो निजी वाहन चालकों के लिए बेहद लाभकारी साबित होगा। संशोधन का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय और एक्सप्रेसवे मार्गों पर यात्रा करने वाले निजी वाहनों के लिए टोल शुल्क में छूट देना है। इसे राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क (दरों और संग्रह का निर्धारण) संशोधन नियम, 2024 के नाम से जाना जाएगा।

इस नए नियम के तहत, निजी वाहनों के लिए टोल शुल्क प्रणाली में बड़ा बदलाव किया गया है, जिससे प्रतिदिन 20 किलोमीटर तक की यात्रा करने वाले वाहनों को किसी प्रकार का टोल शुल्क नहीं देना होगा, बशर्ते उनके वाहन में ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) की सुविधा हो। यह नियम मुख्य रूप से छोटे वाहन चालकों के लिए राहतकारी होगा, जो रोज़ाना छोटी दूरी की यात्रा करते हैं।

GNSS से लैस वाहन चालकों को मिलेगी छूट

नए नियम के अनुसार, अगर किसी निजी वाहन में GNSS सिस्टम लगा हुआ है, तो उस वाहन को प्रति दिन 20 किलोमीटर की यात्रा के लिए किसी प्रकार का टोल शुल्क नहीं देना होगा। यह निर्णय खासतौर पर उन लोगों के लिए फायदेमंद होगा जो दैनिक यात्रा करते हैं और नियमित रूप से राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेसवे का उपयोग करते हैं।

यदि किसी वाहन की यात्रा 20 किलोमीटर से अधिक की होती है, तो उस स्थिति में टोल शुल्क यात्रा की गई वास्तविक दूरी के अनुसार वसूला जाएगा। इस प्रकार, नई टोल प्रणाली न केवल निजी वाहन मालिकों के लिए यात्रा को अधिक सुविधाजनक बनाएगी, बल्कि उनकी जेब पर भी कम बोझ डालेगी।

मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, "राष्ट्रीय परमिट वाहन के अलावा किसी भी निजी वाहन का चालक, मालिक या प्रभारी व्यक्ति, जो राष्ट्रीय राजमार्ग, स्थायी पुल, बाईपास या सुरंग के समान खंड का उपयोग करता है, उसे GNSS आधारित उपयोगकर्ता शुल्क संग्रह प्रणाली के तहत प्रतिदिन प्रत्येक दिशा में 20 किलोमीटर तक की यात्रा के लिए कोई शुल्क नहीं देना होगा।"

कैसे काम करेगा GNSS आधारित टोल सिस्टम?

ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) एक ऐसी तकनीक है, जो उपग्रहों के माध्यम से वाहन की वास्तविक समय स्थिति को ट्रैक करती है। इस प्रणाली के तहत, वाहन के GNSS सिस्टम द्वारा यह सुनिश्चित किया जाएगा कि वाहन ने कितनी दूरी तय की है।

प्रत्येक यात्रा की सही माप GNSS के द्वारा की जाएगी और इसके आधार पर ही टोल शुल्क की गणना होगी। इस प्रक्रिया से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि वाहन चालक केवल उन्हीं किलोमीटर के लिए टोल दें, जितनी दूरी उन्होंने वास्तव में तय की है। यह एक पारदर्शी और उपयोगकर्ता के अनुकूल प्रणाली है, जिससे वाहन मालिकों को अनावश्यक शुल्क का भुगतान नहीं करना पड़ेगा।

पायलट प्रोजेक्ट और इसके सफल परीक्षण

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने पहले ही GNSS-आधारित टोल संग्रह प्रणाली के तहत एक पायलट परियोजना शुरू की थी। इस परियोजना का उद्देश्य नई टोल प्रणाली को वास्तविक रूप में लागू करने से पहले उसके परिणामों और संभावित चुनौतियों का मूल्यांकन करना था।

केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि पायलट प्रोजेक्ट को कर्नाटक के NH-275 बेंगलुरु-मैसूर खंड और हरियाणा के NH-709 पानीपत-हिसार खंड पर लागू किया गया था। इस परियोजना के सफल परीक्षण के बाद ही इसे पूरे देश में लागू करने का निर्णय लिया गया है।

गडकरी ने आगे बताया कि 25 जून, 2024 को इस प्रणाली के संबंध में एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की गई थी, जिसमें विभिन्न हितधारकों के साथ परामर्श किया गया था। इसके अतिरिक्त, 7 जून, 2024 को एक अंतर्राष्ट्रीय अभिरुचि अभिव्यक्ति (EOI) आमंत्रित की गई थी, जिसमें 22 जुलाई, 2024 तक आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि रखी गई थी। इन कदमों से स्पष्ट है कि सरकार इस नई प्रणाली को जल्द से जल्द लागू करने की दिशा में तेजी से कार्य कर रही है।

फास्टैग के मुकाबले GNSS प्रणाली

वर्तमान में भारत में फास्टैग प्रणाली के माध्यम से टोल वसूली की जाती है, जिसमें वाहन के विंडशील्ड पर एक टैग लगाया जाता है। जब वाहन टोल प्लाजा से गुजरता है, तो उसके फास्टैग से स्वचालित रूप से टोल शुल्क कट जाता है। हालांकि, यह प्रणाली अभी भी फिक्स्ड टोल दरों पर आधारित है, जहां वाहन की यात्रा की दूरी का ध्यान नहीं रखा जाता।

इसके विपरीत, GNSS प्रणाली के तहत वाहन चालक केवल उतनी ही दूरी के लिए टोल का भुगतान करेंगे, जितनी उन्होंने वास्तव में तय की है। यह प्रणाली फास्टैग से अधिक उन्नत और पारदर्शी मानी जा रही है, क्योंकि यह पूरी तरह से वाहन की वास्तविक समय स्थिति पर आधारित है।

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