देश के सबसे चौड़े एक्सप्रेसवे पर जाते ही हवा से बात करेगी आपकी गाड़ी, सिर्फ 45 मिनट में पहुंच जाएंगे दिल्ली से मेरठ
Delhi Meerut Expressway : दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे के बनने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लाखों निवासियों का दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में आना-जाना पहले से कहीं ज्यादा आसान हो गया है। इस एक्सप्रेसवे के बनने से पहले मेरठ से दिल्ली की यात्रा में घंटों जाम का सामना करना पड़ता था, लेकिन अब यह यात्रा महज 45 मिनट में पूरी हो जाती है। इस एक्सप्रेसवे ने वह 31 रेड लाइट्स खत्म कर दी हैं जो पहले इस रूट पर थीं और अब यात्री बिना रुकावट के सिग्नल-फ्री सफर का आनंद ले सकते हैं।
Delhi Meerut Expressway की गति सीमा
दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे पर गति सीमा अलग-अलग खंडों में अलग-अलग निर्धारित की गई है। दिल्ली क्षेत्र (पैकेज 1) में गति सीमा 70 किमी प्रति घंटा, गाजियाबाद क्षेत्र (पैकेज 2) में 100 किमी प्रति घंटा और डासना से मेरठ (पैकेज 4) तक की दूरी पर 120 किमी प्रति घंटा है। इसके साथ ही, 6 लेन वाले इस एक्सप्रेसवे पर ऑटो और बाइक के प्रवेश पर प्रतिबंध है, ताकि यात्रियों को सुगम और सुरक्षित सफर का अनुभव हो।
दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे के चार चरण
दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे का निर्माण चार चरणों में हुआ, जिससे हर चरण में यात्रा और भी सुविधाजनक बनती चली गई:
पहला चरण (निज़ामुद्दीन ब्रिज से दिल्ली-यूपी बॉर्डर): यह खंड 8.7 किलोमीटर लंबा है और इसमें 4 फ्लाईओवर और 3 वाहन अंडरपास शामिल हैं। इस खंड का उद्देश्य निज़ामुद्दीन ब्रिज से लेकर एनएच-24 के दिल्ली-यूपी बॉर्डर तक के ट्रैफिक को सुगम बनाना था।
दूसरा चरण (यूपी बॉर्डर से डासना): 19.2 किलोमीटर लंबे इस खंड में 14 लेन (6 लेन एक्सप्रेसवे, 8 लेन सामान्य राजमार्ग), दोनों तरफ 2.5 मीटर साइकिल ट्रैक, 13 वाहन अंडरपास, और 6 पैदल यात्री अंडरपास का निर्माण हुआ।
तीसरा चरण (डासना-हापुड़ खंड): यह एनएच-24 का 22 किलोमीटर लंबा हिस्सा है, जिसे छह लेन का बनाया गया। सितंबर 2019 में इसका उद्घाटन हुआ और इसकी लागत 1,000 करोड़ रुपये से अधिक थी।
चौथा चरण (डासना-मेरठ खंड): यह 46 किलोमीटर लंबा खंड है, जो 2,000 करोड़ रुपये की लागत से बना और 1 अप्रैल 2021 को इसे जनता के लिए खोला गया।
Delhi Meerut Expressway की विशेषताएं
इस परियोजना में कई सुविधाएं जोड़ी गई हैं ताकि यात्रियों को आरामदायक और सुविधाजनक यात्रा का अनुभव मिल सके। 1 अप्रैल 2021 को पूरी तरह से चालू हुई इस परियोजना में 14 पुल, 28 किलोमीटर साइकिल ट्रैक, 4.66 किलोमीटर एलिवेटेड स्ट्रेच, 22 वाहन अंडरपास और छह फ्लाईओवर/इंटरचेंज शामिल हैं। इसे भारत का सबसे चौड़ा एक्सप्रेसवे कहा जाता है, जिसमें गाजियाबाद के डासना तक 8 लेन की चौड़ाई को बढ़ाकर 14 लेन तक किया गया है।
Delhi Meerut Expressway का महत्व
Delhi Meerut Expressway ने दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद और हापुड़ जैसे प्रमुख क्षेत्रों के बीच यातायात को सुगम बनाया है। इस एक्सप्रेसवे से न केवल मेरठ और दिल्ली के बीच की दूरी कम हुई है, बल्कि मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, और हरिद्वार जैसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहरों के बीच आवागमन भी अधिक सुगम हुआ है। पहले जहाँ मेरठ से दिल्ली की यात्रा में 2.5 घंटे लगते थे, वहीं अब यह सफर सिर्फ़ 45 मिनट में पूरा हो रहा है। यह परियोजना लाखों लोगों के लिए एक बड़ी राहत है, जो हर दिन इस मार्ग पर यात्रा करते हैं।
दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे का इतिहास
दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे की योजना पहली बार 1999 में बनी थी। उस समय एनएच-24 पर बढ़ते ट्रैफिक को संभालने के लिए इस एक्सप्रेसवे का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन कई कारणों से इस पर अमल नहीं हो सका। सालों की चर्चा और योजनाओं के बाद, आखिरकार 31 दिसंबर 2015 को 7,500 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना की आधारशिला रखी गई और 1 अप्रैल 2021 को इसे पूरी तरह से जनता के लिए खोला गया। Delhi Meerut Expressway पर सभी वाहनों की गति पर नजर रखने के लिए स्पीड मॉनिटरिंग कैमरे लगाए गए हैं। इसके अलावा इस एक्सप्रेसवे पर बिना टोल टैक्स के यात्रा संभव नहीं है, जिससे सुनिश्चित किया जा सके कि सभी वाहन चालक नियमों का पालन करें और किसी भी तरह की असुविधा से बचा जा सके।
पर्यावरण के अनुकूल परियोजना
Delhi Meerut Expressway को पर्यावरण के अनुकूल भी बनाया गया है। एक्सप्रेसवे के दोनों किनारों पर पेड़-पौधों की हरियाली और 28 किलोमीटर लंबा साइकिल ट्रैक इसे पर्यावरण के अनुकूल बनाते हैं। इससे न केवल प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद मिल रही है, बल्कि लोगों को स्वास्थ्यवर्धक गतिविधियों के लिए भी प्रोत्साहन मिल रहा है। Delhi Meerut Expressway ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदल दी है। इस एक्सप्रेसवे के माध्यम से न केवल यातायात में सुधार हुआ है, बल्कि स्थानीय विकास को भी बढ़ावा मिला है। यह परियोजना आने वाले समय में दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।