हरियाणा में महिला टीचर ने प्रिंसिपल पर शारीरिक और मानसिक शोषण के आरोप लगाए, प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
महिला शिक्षिका ने बताया कि यह घटनाएं तब शुरू हुईं जब प्रिंसिपल ने उसे एक अन्य शिक्षक के खिलाफ बयान देने के लिए कहा। हालांकि शिक्षिका इस मामले के बारे में पूरी जानकारी नहीं रखती थी और उसने बयान देने से मना कर दिया। इसके बाद प्रिंसिपल ने उसे मानसिक और शारीरिक दबाव में डालने का प्रयास किया।
हरियाणा के जींद शहर में एक सरकारी महिला टीचर ने अपने स्कूल के प्रिंसिपल पर शारीरिक और मानसिक शोषण का गंभीर आरोप लगाया है। महिला शिक्षिका के अनुसार प्रिंसिपल ने उसे शोषण का शिकार बनाया और कई बार उसे गलत कार्यों के लिए दबाव भी डाला। इन आरोपों के बाद अब मामला शिक्षा विभाग और प्रशासन की कार्यवाही पर सवाल खड़ा कर रहा है क्योंकि आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की बजाय उन्हें बचाने का आरोप है।
महिला शिक्षिका ने बताया कि यह घटनाएं तब शुरू हुईं जब प्रिंसिपल ने उसे एक अन्य शिक्षक के खिलाफ बयान देने के लिए कहा। हालांकि शिक्षिका इस मामले के बारे में पूरी जानकारी नहीं रखती थी और उसने बयान देने से मना कर दिया। इसके बाद प्रिंसिपल ने उसे मानसिक और शारीरिक दबाव में डालने का प्रयास किया। महिला शिक्षिका ने कहा कि प्रिंसिपल ने एक होटल में उसे बुलाकर खाना खिलाने के लिए भी कहा जो उसकी रिकार्डिंग भी पुलिस को दी गई है। बावजूद इसके पुलिस ने इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
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इसके बाद महिला शिक्षिका ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों को इस बारे में मौखिक शिकायत दी थी। लेकिन इसमें भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। उसके बाद महिला आयोग से भी इस मामले की शिकायत की गई थी। 5 जून 2023 को महिला आयोग को भेजी गई शिकायत के बावजूद अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। शिकायत के बाद महिला आयोग ने इस शिकायत को एसपी के पास भेज दिया था लेकिन अब तक इस मामले की कोई ठोस जांच नहीं हुई है।
उचाना की एसडीएम डा. किरण सिंह ने बताया कि इस मामले में एक बार दोनों पक्षों को सुनवाई के लिए बुलाया गया था लेकिन उसी दौरान वह सीईओ के पद से ट्रांसफर हो गई थीं। उन्होंने कहा कि अगर इस मामले में उनके पास आता है तो वह आगे की जांच कर रिपोर्ट देंगे। इसके अलावा, महिला शोषण से संबंधित मामलों के लिए एक स्थानीय शिकायत कमेटी भी गठित की जाती है जिसकी अध्यक्षता महिला अधिकारी द्वारा की जाती है। इस कमेटी में शिक्षा विभाग और अन्य विभागों की महिला अधिकारी, वकील और अन्य सदस्य शामिल हैं।
महिला शिक्षिका ने दावा किया कि मामले की जांच के दौरान उसे यह महसूस हुआ कि शिक्षा विभाग और प्रशासन ने प्रिंसिपल पर कार्रवाई करने के बजाय उसे बचाने की कोशिश की है। शिक्षिका के अनुसार जब उसने मामले की शिकायत की थी तब उसे आश्वासन दिया गया था कि कार्रवाई की जाएगी लेकिन अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया है। उन्होंने कहा कि यह मामला कोर्ट में भी चल रहा है लेकिन आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। मामले की जांच करने के लिए गठित कमेटी में शिक्षा विभाग के अधिकारी भी शामिल हैं लेकिन अब तक इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश नहीं की है। इस मामले में कोई भी कार्यवाही तब तक नहीं हो सकती जब तक कमेटी की जांच पूरी नहीं होती।
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महिला शिक्षिका के आरोपों पर प्रिंसिपल ने इनका खंडन करते हुए कहा है कि आरोप गलत हैं। प्रिंसिपल का कहना है कि शिक्षिका की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है और वह दिव्यांग हैं। वह दूसरे व्यक्ति पर निर्भर हैं और यह आरोप उनके खिलाफ झूठे हैं। प्रिंसिपल ने कहा कि उन्होंने कभी भी महिला शिक्षिका के साथ कोई गलत व्यवहार नहीं किया और उन पर लगाए गए आरोप निराधार हैं। महिला आयोग ने यह मामला एसपी के पास भेज दिया था लेकिन फिर भी जांच की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए महिला शिक्षिका ने सीएम विंडो पर भी अपनी शिकायत दी थी लेकिन वहां से भी कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई।
इस बीच, महिला शिक्षिका ने बताया कि इस मुद्दे को लेकर उसने कई बार प्रशासन से कार्रवाई की उम्मीद जताई थी लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। शिक्षिका ने कहा कि अगर उन्हें न्याय नहीं मिलता तो वह अपने मामले को और भी बड़े मंचों पर उठाने की योजना बना रही हैं। मामला जितना गंभीर हो गया है उतनी ही गंभीर यह बात सामने आ रही है कि प्रशासन और शिक्षा विभाग की ओर से इस मामले में कोई सक्रिय कदम नहीं उठाए गए हैं। इस स्थिति में यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या प्रशासन और शिक्षा विभाग अपने कर्मचारियों के खिलाफ ऐसे आरोपों पर कार्रवाई करने में पूरी तरह सक्षम हैं?
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