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मोर पंख के कारोबार पर लगेगी लगाम, सरकार की नई तैयारी

भारत का राष्ट्रीय पक्षी मोर (Peacock) केवल सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व ही नहीं रखता, बल्कि इसे वन्यजीव संरक्षण के लिहाज से भी अहम माना जाता है। हालांकि, मोर के पंख (Feathers) की बिक्री पर अब तक कोई सख्त कानून नहीं था। लेकिन अब सरकार वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (Wildlife Protection Act, 1972) में संशोधन कर इस पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की तैयारी में है। इस कदम का उद्देश्य मोर के शिकार (Hunting) और इसे नुकसान पहुंचाने पर रोक लगाना है।

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय (Environment Ministry) के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ‘‘मोर पंखों के व्यापार (Trade) पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए मंत्रालय एक नए विधेयक पर काम कर रहा है।’’ इस संशोधन के तहत धार्मिक कार्यों (Religious Purposes) में मोर पंख के इस्तेमाल की सीमित छूट दी जाएगी।

संशोधन विधेयक में क्या हैं खास प्रावधान?
मंत्रालय ने वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 43 (3) ए और धारा 44 में बदलाव का प्रस्ताव रखा है। इन संशोधनों के अनुसार, मोर पंखों के लेनदेन (Transaction) और घरेलू बिक्री (Domestic Sale) पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। इसके साथ ही, इन पंखों से बने उत्पादों को बाजार में लाने पर भी रोक लगाई जाएगी।

अधिकारी ने बताया कि यह प्रस्ताव केवल राष्ट्रीय पक्षी की सुरक्षा के उद्देश्य से लाया गया है। प्राकृतिक रूप से गिरने वाले पंखों के नाम पर हो रहे गैर-कानूनी शिकार और व्यवसाय को नियंत्रित करना इस प्रस्ताव की मुख्य प्राथमिकता है।

समाज से मांगी गई राय
इस विधेयक का मसौदा (Draft) तैयार हो चुका है, और इसे अंतिम रूप देने से पहले समाज के विभिन्न वर्गों (Stakeholders) की राय मांगी जा रही है। इसके तहत धार्मिक संगठनों, वन्यजीव कार्यकर्ताओं और स्थानीय समुदायों के सुझाव लिए जा रहे हैं ताकि कानून में सभी पहलुओं को शामिल किया जा सके।

मोर की सुरक्षा के पीछे क्या है उद्देश्य?
वर्तमान कानून के अनुसार, मोर का शिकार और इसके पंख से बनी वस्तुओं का निर्यात (Export) प्रतिबंधित है। हालांकि, देश के भीतर इसका व्यापार इस शर्त पर वैध है कि इन पंखों को पक्षी से प्राकृतिक रूप से गिरा हुआ माना जाएगा। लेकिन इसके चलते अवैध शिकार (Illegal Hunting) को बढ़ावा मिला है।

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