Wheat flour price: नए साल से पहले उपभोक्ताओं पर बढ़ा आर्थिक दबाव, गेहूं और आटे के भाव में फिर आई तेजी
इस वृद्धि के प्रमुख कारणों में से एक प्रमुख कारण गेहूं की बढ़ती मांग है जिसे बाजार में सप्लाई की कमी और बढ़ते उत्पादन की उम्मीद से जोड़ा जा रहा है। हालांकि, गेहूं की कीमतों में हो रही वृद्धि ने आटे की कीमतों को आसमान छूने पर मजबूर कर दिया है।
नई दिल्ली, (Wheat Flour Price Hike): देशभर में गेहूं और आटे की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि देखी जा रही है जो हर वर्ग के उपभोक्ताओं पर आर्थिक दबाव बना रही है। गेहूं की बढ़ती कीमतें न केवल आटे के दाम को प्रभावित कर रही हैं बल्कि इससे बिस्किट, ब्रेड और अन्य गेहूं से बने खाद्य पदार्थों के दामों में भी तेज़ी आ रही है। इस वृद्धि के कारण खाद्य महंगाई (Food Inflation) को नियंत्रित करना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि गेहूं की बढ़ती कीमतें अगले कुछ महीनों तक जारी रह सकती हैं।
इस वृद्धि के प्रमुख कारणों में से एक प्रमुख कारण गेहूं की बढ़ती मांग है जिसे बाजार में सप्लाई की कमी और बढ़ते उत्पादन की उम्मीद से जोड़ा जा रहा है। हालांकि, गेहूं की कीमतों में हो रही वृद्धि ने आटे की कीमतों को आसमान छूने पर मजबूर कर दिया है। वर्तमान में आटे के दाम 50 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गए हैं जो पिछले कई वर्षों में सबसे अधिक हैं। गेहूं के दाम भी एमएसपी (Minimum Support Price) से 24 प्रतिशत अधिक चल रहे हैं जो आम उपभोक्ताओं के बजट को प्रभावित कर रहा है।
भारत में गेहूं के दाम बढ़ने के कारण (Reasons for Wheat Price Hike in India)
गेहूं की कीमतों में हो रही वृद्धि के कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है गेहूं का अधिक मांग में होना। विभिन्न राज्यों में गेहूं की मांग में इज़ाफा हुआ है जिससे थोक कीमतों में वृद्धि हो रही है। उत्तर प्रदेश की प्रमुख मंडियों में गेहूं का थोक दाम 2909 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच चुका है जो सरकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य से 23 प्रतिशत अधिक है। महाराष्ट्र और राजस्थान जैसी मंडियों में भी गेहूं के दाम उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं।
इसके अलावा, गेहूं की आपूर्ति में कमी और सरकार द्वारा गेहूं के वितरण के उपायों की धीमी गति भी गेहूं की कीमतों में वृद्धि का कारण बनी है। भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India) के जरिए गेहूं की आपूर्ति बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन इन प्रयासों का असर सीमित नजर आ रहा है।
आटे की कीमतों में भारी वृद्धि (Wheat Flour Price Surge)
गेहूं की कीमतों में हो रही वृद्धि का सबसे बड़ा असर आटे की कीमतों पर पड़ा है। आटे की खुदरा कीमतें अब 50 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई हैं जो कि साल 2009 के बाद का सबसे अधिक रेट है। यही नहीं, कई राज्यों में थोक मूल्य भी 45 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच चुका है। इस बढ़ोतरी के कारण, उपभोक्ताओं को अपनी रोज़मर्रा की खाद्य वस्तुएं खरीदने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ ही, गेहूं से बने खाद्य पदार्थ जैसे बिस्किट, ब्रेड और अन्य वस्तुओं के दाम भी बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।
गंभीर आर्थिक असर (Economic Impact)
गेहूं और आटे की बढ़ती कीमतों से न केवल आम उपभोक्ताओं पर बल्कि खाद्य उद्योग पर भी गंभीर असर पड़ा है। छोटे व्यापारी और दुकानदार, जिनकी आमदनी मुख्य रूप से गेहूं से बने खाद्य पदार्थों पर निर्भर है वे भी अब मुश्किल में पड़ गए हैं। आटे की बढ़ती कीमतों के कारण छोटे व्यवसायी अपने उत्पादों की कीमतें बढ़ाने पर मजबूर हो रहे हैं जिससे उपभोक्ताओं के लिए जीवन यापन कठिन हो रहा है।
मूल्य वृद्धि को नियंत्रित करने के उपाय (Measures to Control Price Hike)
इस बढ़ोतरी को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं जैसे कि भारतीय खाद्य निगम के जरिए गेहूं की आपूर्ति को बढ़ाना और मिलर्स पर स्टॉक लिमिट लागू करना। हालांकि इन उपायों का प्रभाव सीमित रहा है और गेहूं की कीमतें अब भी एमएसपी से काफी अधिक हैं। सरकार को सस्ते गेहूं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए और ठोस कदम उठाने होंगे।