गेहूं की बढ़ती कीमतों ने आम लोगों को किया परेशान, आटे के दाम भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचे, जानिए कारण
भारत में गेहूं की कीमतों में लगातार हो रही वृद्धि (wheat price today) ने आम जनता की चिंता बढ़ा दी है। जहां एक तरफ गेहूं के रेट आसमान छूने लगे हैं वहीं आटे की कीमतों में भी जबरदस्त उछाल आया है। गेहूं की बढ़ी हुई कीमतों ने आटे की कीमत को 45 रुपये प्रति किलो तक पहुंचा दिया है जो पिछले 16 वर्षों में सबसे अधिक है। इस लेख में हम जानेंगे कि गेहूं के बढ़ते दामों के पीछे क्या कारण हैं और सरकार के कदम इस पर किस हद तक प्रभावी साबित हो रहे हैं।
देश में गेहूं के भाव (gehu ka bhav) में हाल ही में तेज़ी आई है जिसके कारण आटे का भी दाम बढ़ गया है। यूपी में गेहूं का थोक मूल्य (wheat wholesale price) 3000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच चुका है जो एमएसपी से लगभग 700 रुपये अधिक है। महाराष्ट्र राजस्थान और दिल्ली एनसीआर में भी गेहूं के रेट में भारी वृद्धि देखने को मिल रही है। व्यापारी और किसान दोनों इस बदलाव से परेशान हैं और कई उपायों की तलाश कर रहे हैं।
इस बढ़ोतरी के पीछे मुख्य कारणों में से एक है गेहूं की आपूर्ति में कमी। हालांकि गेहूं का उत्पादन सामान्य होने की उम्मीद थी लेकिन कुछ कारणों से आपूर्ति में गिरावट आई है। इसके अतिरिक्त मौसम की अनिश्चितताओं और रबी फसलों के लिए कम भूमि आवंटन ने भी गेहूं की कीमतों को प्रभावित किया है।
आटे की कीमतों में जबरदस्त उछाल
गेहूं के बढ़ते दामों का सीधा असर आटे की कीमतों पर पड़ा है। 45 रुपये प्रति किलो तक पहुंचने वाली आटे की कीमतें 2008 के बाद सबसे ज्यादा हो गई हैं। कई राज्यों में आटे का दाम पहले से कहीं अधिक हो चुका है। व्यापारी और खुदरा विक्रेता इस वृद्धि को लेकर चिंतित हैं और मानते हैं कि अगर जल्द ही कदम नहीं उठाए गए तो दाम और बढ़ सकते हैं।
सरकार ने गेहूं के रेट्स (gehu ke rate) को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। खाद्य मंत्रालय ने गेहूं के स्टॉक लिमिट (wheat stock limit) को बढ़ाने का निर्णय लिया है। इस फैसले के तहत अब व्यापारी और रिटेल विक्रेता पहले से कम गेहूं स्टोर कर सकेंगे। सरकार का दावा है कि इस कदम से गेहूं की आपूर्ति बढ़ेगी और कीमतों पर काबू पाया जा सकेगा।
हालांकि कुछ व्यापारी इसे अप्रभावी मानते हैं। उनका कहना है कि पिछले दो सालों में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का कोई खास असर नहीं देखा गया है। देश में गेहूं की कमी बनी हुई है और यही कारण है कि कीमतें बढ़ रही हैं।
गेहूं की आपूर्ति में कमी के साथ बढ़ती मांग
वर्तमान में गेहूं की मांग में भारी वृद्धि देखी जा रही है जबकि आपूर्ति में कमी है। पिछले साल के मुकाबले इस साल गेहूं का रकबा थोड़ा ज्यादा था लेकिन कुछ अन्य रबी फसलों की वजह से इसकी बुआई में देरी हो रही है। सरकार दावा करती है कि गेहूं का पर्याप्त भंडार (wheat stock) है लेकिन बाजार में इसकी कमी महसूस हो रही है।
सरकार ने गेहूं के भंडारण सीमा में बदलाव किया है जिससे गेहूं की आपूर्ति को बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। साथ ही मार्च तक गेहूं की स्टॉक लिमिट जारी रखने का निर्णय लिया गया है जिससे नया गेहूं बाजार में आने पर दामों में कमी आ सकती है।
अगले कुछ महीने गेहूं की कीमतों के लिए अहम
अगले कुछ महीने गेहूं की कीमतों के लिए अहम हो सकते हैं। अगर मौसम सामान्य रहता है और गेहूं का उत्पादन अच्छी तरह से होता है तो कीमतों में गिरावट देखने को मिल सकती है। हालांकि अब तक के ट्रेंड्स को देखते हुए गेहूं के रेट में और वृद्धि का खतरा भी है। व्यापारियों का मानना है कि अगर सरकार जल्दी कोई ठोस कदम नहीं उठाती तो गेहूं और आटे के दाम और बढ़ सकते हैं। इसके साथ ही यह भी माना जा रहा है कि गेहूं की कीमतों में स्थिरता लाने के लिए अधिक कड़े कदम उठाने की जरूरत है।