धान की पत्तियों का सूखना, किसान ऐसे करें पत्ती झुलसा रोग से बचाव, तुरंत मिलेगा लाभ
धान की खेती में किसानों के लिए पत्तियों का सूखना एक बड़ी समस्या है जो उनकी उपज और आय पर गहरा असर डालती है। इस समस्या का मुख्य कारण एक जीवाणु है जो पत्ती झुलसा रोग (BLB) के रूप में जाना जाता है। यह रोग धान की फसलों में तेजी से फैलता है खासकर जब मौसम गर्म और नमी से भरा होता है। पत्ती झुलसा रोग की शुरुआत में पत्तियों पर छोटे-छोटे धब्बे दिखाई देते हैं जो धीरे-धीरे पूरे पत्ते को पीला कर देते हैं। अगर इस रोग को समय पर नियंत्रित नहीं किया गया तो यह पौधे के तने तक पहुंच सकता है और पूरे पौधे को नष्ट कर सकता है।
रोग के पनपने के आदर्श परिस्थितियाँ
BLB रोग को फैलाने के लिए कुछ विशेष परिस्थितियाँ जरूरी होती हैं। जब तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो और हवा में नमी का स्तर 70% से ज्यादा हो तो यह जीवाणु तेजी से सक्रिय हो जाता है। ऐसे मौसम में यह रोग धान की फसलों को अधिक प्रभावित करता है जिससे किसानों की फसल बुरी तरह प्रभावित होती है।
पत्ती झुलसा रोग के लक्षण
किसान साथियों पत्ती झुलसा रोग को समय पर पहचानना बेहद जरूरी है ताकि इसके प्रभावी उपचार किए जा सकें। इस रोग के कुछ विशिष्ट लक्षण होते हैं जिन्हें ध्यान में रखते हुए आप अपनी फसलों की रक्षा कर सकते हैं।
पत्तियों का पीला पड़ना: इस रोग के प्रारंभिक चरण में पत्तियों के सिरे या नोक वाले हिस्से पर पीले धब्बे उभरने लगते हैं।
लंबी भूरी धारियों का उभरना: पत्तियों पर लंबी भूरी धारियाँ बनने लगती हैं जो धीरे-धीरे पूरी पत्ती को कवर कर लेती हैं।
पत्तियों का मुरझाकर सूखना: रोग बढ़ने पर प्रभावित पत्तियाँ मुरझाकर सूख जाती हैं।
रिसाव का होना: पत्तियों के प्रभावित हिस्से को काटने पर गाढ़े पानी जैसे रंग का रिसाव होता है जो इस रोग का एक प्रमुख संकेत है।
पत्ती झुलसा रोग का प्रभाव
धान की फसल पर पत्ती झुलसा रोग का गंभीर असर पड़ता है। अगर यह रोग समय पर नियंत्रित नहीं किया गया तो यह न सिर्फ पत्तियों को बल्कि पूरे पौधे को नष्ट कर सकता है। इसके परिणामस्वरूप किसानों की उपज कम हो जाती है और उनकी आर्थिक स्थिति पर भी बुरा असर पड़ता है। इस रोग के कारण फसल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है जिससे बाजार में उसकी मांग और कीमत पर भी असर पड़ता है।
पत्ती झुलसा रोग का प्रभावी उपचार
कॉपर ऑक्सिक्लोराइड का छिड़काव: फसलों में इस रोग के लक्षण दिखने पर कॉपर ऑक्सिक्लोराइड (50% WP) का 400 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
स्ट्रेप्टोसायक्लिन का उपयोग: कॉपर ऑक्सिक्लोराइड के छिड़काव के 10-12 दिन बाद स्ट्रेप्टोसायक्लिन 12-18 ग्राम प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करना चाहिए। यह जीवाणु को नियंत्रित करने में मदद करता है।
यूरिया का प्रयोग कम करें: रोगग्रस्त फसलों पर यूरिया का उपयोग कम से कम करना चाहिए क्योंकि इससे रोग और भी तेजी से फैल सकता है।
खरपतवार नियंत्रण: खेत में उगे खरपतवारों को पूरी तरह से निकाल देना चाहिए क्योंकि यह रोग इन्हीं खरपतवारों से फैल सकता है।
सिंचाई में सावधानी: रोग लगने पर कुछ दिनों के लिए खेत में पानी नहीं देना चाहिए। अगली सिंचाई के समय 2 किलो ब्लीचिंग पाउडर को पानी में मिलाकर सिंचाई करने से भी लाभ मिल सकता है।